विक्रमादित्‍यकालीन मुद्रा-मुद्रांक

उज्जयिनी के लोकप्रिय, ऐतिहासिक शासक महाराजा विक्रमादित्य ने शकों को पराजित कर एक नया संवत् 'विक्रम संवत' 57 ईस्वी पूर्व में प्रारंभ किया था। विक्रमादित्य जन-जन में लोकप्रिय रहे हैं। भारतीय राजाओं के आदर्श, धर्मप्रिय और लोक कल्याण में निरंतर प्रयत्नशील विक्रमादित्य का प्रचार प्रसार वृहत्तर भारत में वेताल पच्चीसी, सिंहासन बत्तीसी के साथ होता रहा। विक्रम संवत् वर्तमान में भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित है।
भारतीय अस्मिता के प्रतीक गौरवशाली सम्राट् विक्रमादित्य के काल प्रथम सदी ईस्वी पूर्व के समय की पुरातत्वीय सामग्री यथा सील (मुद्राएँ), मूर्तिलेख, शिलालेख, सिक्के एवं प्रचुर साहित्य उपलब्ध हैं। महाराजा विक्रमादित्य केवल नाम ही नहीं एक उपाधि के रूप में भारतीय शासकों को गौरवान्वित करता रहा है।
जन सामान्य तक विक्रमादित्य कालीन सामाजिक, पुरातत्वीय सामग्री छायाचित्रों के माध्यम से प्रदर्शित करने का यह प्रयास है। यह सामग्री अश्विनी शोध संस्थान महिदपुर में संरक्षित / संग्रहीत है।