कालिदास

 

पुराकविनां गणनाप्रसङ्गे कनिष्ठिकाधिष्ठित कालिदासा।

अद्यापि तत्तुल्यकवेरभावा दनामिका सार्थवती बभूव ।।

अर्थात् प्राचीन कवियों की गणना के प्रसंग में कालिदास कनिष्ठिका उंगली पर विराजमान है। क्योंकि उनकी तुलना में कोई भी कवि नहीं है अतः कनिष्ठिका के बाद आने वाली अनामिका अपने नाम को सार्थक करती है। तात्पर्य यह है कि प्राचीन कवियों की गणना में कालिदास ही प्रथम एवं कालिदास ही अंतिम है।

कालिदास की देश-काल-विजयिनी कृतियों की रमणीयता के कारण कालिदास की विश्वभर में अपार प्रशंसा होती है इसी कारण सभी कवियों में कालिदास सर्वाधिक अग्रणी हैं। कालिदास विक्रमादित्य के अद्वितीय नवरत्न थे। न केवल नवरत्न वरन् उनके राजकवि एवं अपनी परिवार के निकटस्थ सम्बन्धी भी माने जाते थे। इसी कारण निश्चित रूप से महाराजा विक्रमादित्य ने इन पर अपना विशेष अनुग्रह रखा था और वे इसी योग्य भी थे।

यूँ तो कालिदास के काल एवं निवास के विषय में कई मत प्रचलित हैं। कुछ विद्वान उनको मगध का, तो कोई उज्जैन का, तो कोई उन्हें गंगा एवं हिमालय क्षेत्र का निवासी मानते हैं। उसी प्रकार कालिदास के काल के विषय में भी कई मत हैं। कोई उन्हें द्वितीय शती ई.पू. का, तो कोई प्रथम शती ई. का, तो कोई चौथी-पाँचवी शताब्दी का मानते हैं। इतने मतों के आने में कोई आश्चर्य भी नहीं है क्योंकि जब कवि का कवित्व इतने उत्कृष्टतम् स्तर का हो तो हर क्षेत्र एवं हर काल उन पर अपना अधिकार जतायेगा। अधिकतर विद्वान निश्चित रूप से अधिकांश उन्हें विक्रमादित्य के नवरत्नों में प्रमुख रत्न एवं प्रथम शताब्दी ई.पू. का मानते हैं। सर विलियम जोन्स और डॉ. पीटरसन इन्हें ई. सन् से 57 वर्ष पूर्व विक्रमादित्य के काल का मानते हैं। विद्वान भी इसी तथ्य को स्वीकार करते हैं। पण्डित नन्दर्गीकर भी यही मानते हैं उनका तर्क है कि प्रथम शताब्दी ई. सन् में हुए अश्वघोष ने अपनी रचना 'बुद्धचरित' कालिदास के काव्यों से न जाने कितने ही श्लोक ज्यों के त्यों रख लिये हैं। अतः स्पष्ट है कि प्रथम शताब्दी ई. पू. के कालिदास के काव्य वैभव से प्रभावित होकर अश्वघोष ने भी कालिदास की भाँति काव्य रचना करने का प्रयास किया।

क्षेत्रेश चटोपाध्याय एवं राजबली पाण्डेय भी कालिदास को प्रथम शताब्दी में रखते हैं। मालविकाग्निमित्रम् में भी शुंग वंशी राजा का वर्णन जो कि लगभग कालिदास से 100 वर्ष पूर्व हुई थी औचित्यपूर्ण लगता है। कालिदास ने अपने विभिन्न साहित्यों में से एक का विषय इस काल की रोचक घटनाओं से उठाया हो तो आश्चर्य नहीं है। कालिदास की रचनाओं में महाराष्ट्री प्राकृत का प्रचुर मात्रा में प्रयोग है। अभिज्ञान शाकुन्तल में प्रथम शताब्दी ई. की प्राकृत का प्रयोग किया गया है। अनुश्रुतियों में भी कई कथाएँ कालिदास और विक्रमादित्य के सन्दर्भ में लिखी गई हैं ऐसे में निर्विकार भाव से विक्रमादित्य के समकालीन एवं नवरत्नों में से एक एवं सर्वोपरि कालिदास विक्रम युगीन ही थे। कवि कालिदास की रचनाएँ जगत प्रसिद्ध हैं।