धन्वन्तरि
हमारे साहित्य में तीन धन्वन्तरियों का उल्लेख मिलता है। दैविक, वैदिक और ऐतिहासिक। दैविक धन्वन्तरि के विषय में कहा गया है कि वे रोग पीड़ित देवताओं की चिकित्सा करते थे। उनसे संबंधित अनेक कथाएँ प्राप्त होती हैं। आयुर्वेद साहित्य में प्रथम धन्वन्तरि वैद्य माने जाते हैं। जब देवताओं और असुरों ने 'समुद्र मंथन' किया तो अनेक मूल्यवान वस्तुओं की प्राप्ति के बाद अंत में धन्वन्तरि हाथ में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। धन्वन्तरि हिन्दू धर्म में मान्य देवताओं में से एक हैं। भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद जगत् के प्रणेता तथा वैद्यक शास्त्र के देवता माने जाते हैं। भारतीय पौराणिक दृष्टि से 'धनतेरस' को स्वास्थ्य के देवता धन्वन्तरि का दिवस माना जाता है। धन्वन्तरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। इतिहास में दो अन्य धन्वन्तरियों का वर्णन आता है। प्रथम वाराणसी के क्षत्रिय ‘राजा दिवोदास’ जिन्होंने 'शल्य चिकित्सा' का विश्व का पहला विद्यालय काशी में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य सुश्रुत बनाये गये थे। सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही सुश्रुत संहिता लिखी थी। द्वितीय वैद्य परिवार के ‘धन्वन्तरि’ थे। दोनों ने ही प्रजा को अपनी वैद्यक चिकित्सा से लाभान्वित किया। सुश्रुत के अनुसार काशीराज दिवोदास के रूप में अवतरित भगवान धन्वन्तरि के पास अन्य महर्षिर्यों के साथ सुश्रुत जब आयुर्वेद का अध्ययन करने हेतु गये और उनसे आवेदन किया। उस समय भगवान धन्वन्तरि ने उन लोगों को उपदेश करते हुए कहा कि सर्वप्रथम स्वयं ब्रह्मा ने सृष्टि उत्पादन पूर्व ही अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद को एक सहस्र अध्याय- शत सहस्र श्लोकों में प्रकाशित किया। भावमिश्र का कथन है कि सुश्रुत के शिक्षक ‘धन्वन्तरि’ शल्य चिकित्सा के विशेषज्ञ थे। सुश्रुत गुप्तकाल से संबंधित थे। अत: स्पष्ट है कि विक्रमयुगीन धन्वन्तरि अन्य व्यक्ति थे। इतना अवश्य है कि प्राचीनकाल में वैद्यों को धन्वन्तरि कहा जाता होगा। इसी कारण दैविक से लेकर ऐतिहासिक युग तक अनेक धन्वन्तरियों का उल्लेख मिलता है। शल्य तंत्र के प्रवर्तक को धन्वन्तरि कहा जाता था। इसी कारण शल्य चिकित्सकों का संप्रदाय धन्वन्तरि कहलाता था। शल्य चिकित्सा में निपुण वैद्य धन्वन्तरि उपाधि धारण करते होंगे। विक्रमादित्य के धन्वन्तरि भी शल्य चिकित्सक थे। वे विक्रमादित्य की सेना में मौजूद थे। उनका कार्य सेना में घायल हुए सैनिकों को ठीक करना था। धन्वन्तरि द्वारा लिखित ग्रंथों के ये नाम मिलते हैं- रोग निदान, वैद्य चिंतामणि, विद्याप्रकाश चिकित्सा, धन्वन्तरि निघण्टु, वैद्यक भास्करोदय तथा चिकित्सा सार संग्रह।