वराहमिहिर

 

मान्‍यता अनुसार शीर्ष भारतीय गणितज्ञ एवं खगोलज्ञ आचार्य वराहमिहिर का जन्‍म 123 ई.पू. तथा 82 वर्ष की उम्र में अर्थात ई.पू. 41 में उन्‍होंने संसार से विदा ली। जबकि पश्चिम के इतिहासकारों ने भारतीय परम्‍परा के बारे में भ्रम खड़ा करने की परम्‍परा अनुसार वराहमिहिर का जन्‍म 505 ई. बताते रहे हैं। वराहमिहिर ने ही अपने पंचसिद्धान्तिका में सबसे पहले बताया कि अयनांश का मान 50.32 सेकण्ड के बराबर है। कापित्थक (उज्जैन) में उनके द्वारा विकसित गणितीय विज्ञान का गुरुकुल सात सौ वर्षों तक अद्वितीय रहा। उन्होंने अपने पिता से परम्परागत गणित एवं ज्योतिष सीखकर इन क्षेत्रों में व्यापक शोध कार्य किया। समय मापक घट यन्त्र, इन्द्रप्रस्थ में लौहस्तम्भ के निर्माण और ईरान में वेधशाला की स्थापना उनके प्रमुख कार्यों की झलक देते हैं। वे सूर्य के उपासक थे उन्होंने लघुजातक, बृहत्संहिता, बृहत्जातक, योगयात्रा और पंचसिद्धन्तिका नामक ग्रन्थों की रचना की। बृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या, वनस्पतिशास्त्र, प्रकृति, इतिहास, भौतिक व भूगोल जैसे विषयों का उल्लेख है। वराहमिहिर विक्रमादित्य के नवरत्नों में शामिल थे। हिन्दू ज्योतिष साहित्य के सबसे बड़े पुरोधा वराहमिहिर ने पंचसिद्धान्तिका नामक ग्रन्थ से पाँच सिद्धांतों की जानकारी दी है जिसमें भारतीय तथा पाश्चात्य ज्योतिष विज्ञान की जानकारी सम्मिलित है। फलित ज्योतिष की जानकारी उनके ग्रन्थों में अधिक है। जन्मकुंडली बनाने की विद्या को जिस होराशास्त्र के नाम से जाना जाता है उनका बृहज्‍जातक ग्रन्थ इसी शास्त्र पर आधारित है। लघुजातक इसी ग्रन्थ का संक्षिप्त रूप है। वराहमिहिर संख्या-सिद्धान्त नामक एक गणित ग्रन्थ के भी रचयिता हैं जिसके बारे में बहुत कम ज्ञात है। इस ग्रन्थ के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, क्योंकि इसका एक छोटा अंश ही प्राप्त हो पाया है। प्राप्त ग्रन्थ के बारे में पुराविदों का कथन है कि इसमें उन्नत अंकगणित, त्रिकोणमिति के साथ-साथ कुछ अपेक्षाकृत सरल संकल्पनाओं का भी समावेश है। पृथ्वी की अयन-चलन नाम की ख़ास गति के कारण ऋतुओं का आगमन होता है, इसका भी वराहमिहिर ने ही ज्ञान कराया। गणित द्वारा की गयी नयी गणनाओं के आधार पर उन्होंने पंचांग का निर्माण किया। वराहमिहिर ने ज्या सारणी को और अधिक परिशुद्ध बनाया। उन्होंने शून्य एवं ऋणात्मक संख्याओं के बीजगणितीय गुणों को परिभाषित किया। इस महान् वैज्ञानिक की मृत्यु ई.पू. 41 में हुई। वराहमिहिर की मृत्यु के बाद ज्योतिष गणितज्ञ ब्रह्म गुप्त ( ग्रंथ- ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खण्ड खाद्य), लल्ल(लल्ल सिद्धांत), वराह मिहिर के पुत्र पृथुयशा (होराष्ट पंचाशिका) और चतुर्वेद पृथदक स्वामी, भट्टोत्पन्न, श्रीपति, ब्रह्मदेव आदि ने ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों पर टीका ग्रंथ लिखे।