अमरसिंह

 

अमरसिंह विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक, एक महान कोशकार थे। एक उनके द्वारा सृजित 'अमरकोश' संस्कृत भाषा एवं साहित्य का एक महान ज्ञानागार है। इस पर कई टीकाएँ भी लिखी गई हैं। इसे ही पहले नामलिंगानुशासन भी कहते थे। यह संभवतः सर्वप्रथम संस्कृत कोश है। अमरकोश में कालिदास का नाम भी आता है।

अमरसिंह के नवरत्न के रूप में अधिष्ठित करने के लिये सर्वप्रमुख एक अभिलेखीय पुरातत्‍च स्रोत प्राप्त होता है। यह बोधगया का एक अभिलेख है जिसकी चर्चा कर्न करता है। कर्न ने वराहमिहिर की बृहत्‍संहिता के अंग्रेजी अनुवाद की प्रस्तावना में यह स्पष्ट किया है। इसमें कहा गया है कि विक्रमादित्य विश्व का प्रसिद्ध राजा है। इसके दरबार में नवरत्नानि कहलाने वाले नौ विद्वानजन हैं। उनमें से एक 'अमरदेव' है जो कि राजा के सलाहकार है, महान विद्वान साथ ही राजकुमार का विशेष प्रिय भी है। यह अभिलेख विक्रम सम्‍वत् 1015 अथवा 948 ई. का है। निश्चित रूप से पूर्ववर्ती सम्राट और अमरदेव (अमरसिंह) को एवं उनके आपसी प्रेम सम्बन्ध को अभिलेख में रेखांकित करता है। कुछ लोग इसी आधार पर विक्रमादित्य के भाई के रूप में भी अमरसिंह को देखते थे।

अमरसिंह के विषय में एक और रूचिकर तथ्य यह भी है कि वे विशाला (उज्जैन) में शिक्षा प्राप्त करके काव्यकार की किसी परीक्षा में उत्तीर्ण हुये थे। यह संदर्भ राजशेखर की काव्यमीमांसा में मिलता है। इस तथ्य से जहाँ यह स्पष्ट होता है कि एक अन्य रत्न वररूचि की भाँति अमरसिंह ने यहाँ एक काव्य परीक्षा दी थी।

अमरकोश को कोश का जगत पिता तक कहा जाता है। बोपदेव ने आठ शाब्दिकों में अमरसिंह की भी गणना की गई है। कोशकार के साथ ही कवि के रूप में अमरसिंह की ख्याति और लोकप्रियता पर्याप्त रही। यह विभिन्न काव्य प्रशस्तियों में स्पष्ट हो जाता है।

अमरसिंह ने अपने काल तक लिखे गये पूर्ववर्ती सभी कोशों का अध्ययन किया था और उनके शब्दों का समावेश अपने कोश में किया था विशेष रूप से वैदिक शब्द कोश के शब्दों का तो लगभग पूर्ण समावेश था। संस्कृत साहित्य के पूर्ववर्ती सभी कोशों का विश्लेषण अमरसिंह ने किया था। ऐसे कई शब्द मिलते हैं जो वैदिक शब्द हैं किन्तु अन्य संस्कृत साहित्य में नहीं मिलते, वहीं कुछ ऐसे भी शब्द हैं जो कि अन्य संस्कृत साहित्य में हैं किन्तु वेदों में नहीं हैं का भी समावेश अमरसिंह ने अपने कोश में किया है। यह इस कोश का महत्वपूर्ण गुण है जो कि बाद के कोशों में नहीं मिलता। द्वितीय अमरकोश में हम यह भी पाते हैं कि न केवल संस्कृत के शिष्ट एवं क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग ही अमरसिंह ने किया है वरन् उसके अतिरिक्त लोकप्रचलन के शब्दों को भी लिया है। पाली, अर्धमागधी, अन्य मध्यकालीन भारतीय आर्य साहित्य के शब्दों आदि का भी बुद्धिमत्तापूर्ण ढंग से समावेश किया गया है।

प्रयोगव्युत्पत्तौ प्रतिपदविशेषार्थकथने

प्रसत्तौ गाम्भीर्ये रसवति च काव्यार्थकथने ।

अगम्यायामन्यैर्दिशि परिणतावर्थवच सोन्तिं

चेदस्माकं कविऽमरसिंहो विजयते।।