शंकु
ज्योर्ति विदाभरण में वर्णित नवरत्नों के नामों में चौथे क्रम में आने वाले 'शंकु' नामक विद्वान के विषय में सर्वाधिक सीमित सूचनाएं मिलती हैं। शंकु से सम्बन्धित साक्ष्यों में सर्वाधिक विश्वसनीय वही श्लोक है जो उनकी उत्पत्ति के विषय में बताता है:-
"ब्राह्मण्यामभवद वराहमिहिरो ज्योतिर्विदाभग्रणी
राजा भर्तृहरिश्च विक्रमनृपः क्षत्रात्मजायामभूत।
वैश्यायां हरिचन्द्र वैद्यतिलको जातश्च शङकुः कृती
शूद्रायाममरः षडेव शबरस्वामि द्विजस्यात्मजाः।।
अर्थात् शबर स्वामी ने सवर्णों की स्त्रियों से विवाह किया था। ब्राह्मण स्त्री से वराहमिहिर ने जन्म लिया। क्षत्रिय स्त्री से भर्तृहरि और विक्रमादित्य ने जन्म लिया। वैश्य स्त्री से हरिश्चन्द्र और शंकु ने जन्म लिया और शूद्र स्त्री से अमरसिंह ने जन्म लिया।
इस आधार पर वैश्य वर्ण से शंकु सम्बन्धित थे। यहाँ इस श्लोक का यह भी तात्पर्य हो सकता है कि 'शबर भाष्य' के कर्ता श्री शबर स्वामी ने चार वर्ण के शिष्यों को विद्या प्रदान की थी। इस प्रकार शंकु एक वैश्य वर्णी थे एवं विक्रमादित्य के गुरू भाई रहे होंगे। निश्चित रूप से शबर स्वामी से उत्पत्ति का आधार यह है कि वे इन सभी के गुरू एवं दिग्दर्शक थे। इस आधार पर यह सभी समकालीन भी सिद्ध होते हैं। साथ ही यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि इतने अन्य नवरत्न होते हुये भी श्लोक कर्ता ने शंकु, अमरसिंह को वराहमिहिर एवं विक्रमादित्य एवं भर्तृहरि के समकक्ष रखा है।
शंकु का उल्लेख ज्योतिर्विदाभरण के 8वें श्लोक में भी पाया जाता है। इसके अनुसार-
शंकु सुवाम्वररूचिर्मणिरंगुदत्तो, जिष्णु स्त्रिलोचनहरी-घटकर्पराख्यः।
अन्येऽपि सन्ति कवयोऽमरसिंहपूर्वा रास्यैव विक्रमनृपस्य सभासदोऽमि।।
अर्थात् विक्रम की सभा में 9 सभासद थे (1) शंकु, (2) वररूचि, (3) मणि, (4) अंगुदत्त, (5) विष्णु, (6) त्रिलोचन. (7) हरि, (8) घटर्खपर, (9) अमरसिंह ।
इस श्लोक के आधार पर शंकु निश्चित रूप से एक विद्वान एवं नवरत्न तो थे ही तभी कवि ने उन्हें दो बार स्मरण किया।
कोई विद्वान इन्हें मन्त्रवादिन् और कोई इनको प्रसिद्ध रसाचार्य शंकु बतलाने का भी प्रयत्न करते हैं। कुद किंवदन्तियों में इनको स्त्री भी बतलाया गया है। गुजरात के प्रख्यात चित्रकार श्री रविशंकर रावल के नवरत्नों के चित्र में इन्हें स्त्री चित्रित किया है। वहीं कुछ उनके नाम को आधार बनाकर इन्हें ज्योतिषाचार्य कहते हैं। शंकु ज्योतिषीय गणना में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला एक यंत्र है जो कीलनुमा होता है।
शंकु के विषय में कीथ जैसे विद्वान अलग ही धारणा रखते हैं उनके अनुसार शंकु नाट्यशास्त्र के प्रसिद्ध टीकाकार शंकुक से अभिन्न है। कीथ इसका आधार 'व्यक्तिविवेक' नामक काव्य है जो कि महिमान भट्ट द्वारा रचित है। किन्तु अधिकांश विद्वान इसका खंडन करते हैं क्योंकि यह बहुत बाद का लिखा हुआ है क्योंकि इस शंकुक ने नवीं शताब्दी में कश्मीर के शासक अजीतपदा के काल में कवि ललिता एवं रसा की समीक्षा लिखी थी। ऐसे में विक्रमादित्य के काल (प्रथम शती ई.) से इस शंकुक का कोई भी सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार विक्रमकालीन नवरत्न शंकु कोई भिन्न ही था।
इस प्रकार हम पाते हैं कि नवरत्नों में शंकु के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर सर्वाधिक कम सूचनाएं प्राप्त होती हैं। उनकी उत्पत्ति एवं जन्म स्थान तो मिलते ही नहीं हैं उनके कृत्तित्व एवं विशेष प्रतिभा का भी स्पष्टीकरण नहीं मिलता जिससे यह सिद्ध हो जाये कि शंकु को नवरत्नों में सम्मिलित करने के पीछे विक्रमादित्य का क्या आधार था।