घटर्खपर
विक्रमादित्य के नवरत्नों में परिगणित घटर्खपर महान तुकान्त कवि थे जिन्होंने संभवतः प्रथम दूतकाव्य की रचना की जो आगे चलकर कवि कालिदास के मेघदूत का आधार बना। इन्हें 'घटर्खपर' अथवा 'घटकर्पर' दोनों नामों से जाना जाता है। उन्होंने कहीं भी अपने जन्म स्थान अथवा अन्य परिचय नहीं दिया है। अपने नाम के विषय में वे स्वयं एक श्लोक में कहते हैं-
"भावानुरक्त-वनिता-सुरतैः शपैयमालाम्बय चाम्बु तृषितः
जीयेय येन कविना यमकैः परेण, तस्मै वहेयमुदकं करकोशपेयम् घटकर्परण।।
अर्थात् ''जो कवि मुझे यमक-रचना में परास्त कर देगा, उसके लिये मैं फूटे घड़े से पानी भरूँगा" ऐसी प्रतिज्ञा के लिये प्रयुक्त 'घट-खर्पर' पद उनका नाम मान लिया गया।
बृजकिशोर चतुर्वेदी ने इस नाम के सम्बन्ध में एक अन्य तर्क दिया है कि "विक्रमादित्य के नवरत्न केवल कवि अथवा लेखक ही नहीं थे अपितु वे नौ ग्रहों के आधार पर शासन के विभिन्न विभागों के अध्यक्ष भी थे और वे अपने-अपने विभागों के अध्यक्ष भी थे और शासन सम्बन्धी कार्यों में भी सहयोग करते थे। उन दिनों तंत्र का बहुत अधिक प्रचार था। तन्त्रों के माध्यम से ही रस और पारद के प्रयोगों से धातु परिवर्तन, स्वर्णादि निर्माण, जसद (जस्ता) का निर्माण आदि भी होता था। रूद्रयामल में वर्णित 'धातुमञ्जरी में जसद (Zinc) का पर्याय 'खर्पर' भी बतलाया गया है। यथा -
जसत्वं च जरातीतं राजतं यशदायकम्।
रुप्यभ्राता वरीयक्ष्च त्रोटक कोमलं लघु।।
चर्मकं खर्परं चैव रसदं रसवर्धकम्।
सदापथ्यं बलोपेतं पीतरागं सुभस्मकम्।।
यह जसद-जस्ता यशदायक (अपभ्रंश) उन दिनों नवीन अविष्कार के कारण देश की अमूल्य संपत्ति हो रहा था। अतः उस समय के वैज्ञानिकों को देखकर स्वतंत्र साम्राज्य स्थापित करने वाले सम्राट विक्रमादित्य ने आविष्कारों का स्वतन्त्र विभाग स्थापित कर किसी विशेषज्ञ को उसका अध्यक्ष बनाया होना और विशेषज्ञ का नाम ही किसी कारणवश 'घटर्खपर' पड़ गया हो तो कोई आश्चर्य नहीं। घड़े में जसद रखने वाले को घटर्खपर कहते होंगे।
घटर्खपर के एक प्राचीन टीकाकार ने लिखा है कि-
घटन-खर्परमानीय वहनाद घट-खर्परम्।
इति नाम्ना श्रुतं तस्माद् योजनं तस्य दुर्घटम्।।
ज्योर्तिविदाभरण के अनुसार नवरत्नों की सूची में से एक घटर्खपर अपने नाम की ही भाँति अद्वितीय थे। इनकी विशेषज्ञता का क्षेत्र कवित्व था। इनके मात्र दो काव्य अब तक प्राप्त हैं जो अपने आप में इतने विशिष्ट हैं कि उनसे घटर्खपर की विद्वता प्रदर्शित होती है।
अभी तक घटर्खपर के दो काव्य प्राप्त हैं। प्रथम घटर्खपर काव्य एवं द्वितीय नीतिसार।
घटर्खपर काव्य 21 अथवा 22 श्लोकों का एक काव्य संग्रह है। यह एक दूत काव्य है जिसमें एक विरहिणी अपने दूरस्थ पति को पावस ऋतु में स्मरण करती है एवं मेघों के माध्यम से संदेश भेजती है।