महर्षि अंगिरा

 

         पुराणों में बताया गया है कि महर्षि अंगिरा ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं तथा ये गुणों में ब्रह्मा के ही समान हैं। वज्रकुलोत्‍पन्‍न एक प्रसिद्ध वैदिक ऋषि हैं, जिनका उल्‍लेख मनु, ययाति, दध्‍यच्, प्रियमेध, कण्‍व, अत्रि, भृगु आदि के साथ मिलता है। इनकी गणना सप्‍तऋषियों में  वशिष्‍ठ, विश्‍वामित्र, मरीचि आदि के साथ तथा दस प्रजापतियों में की जा‍ती है। इनके दिव्य अध्यात्मज्ञान, योगबल, तप-साधना एवं मन्त्रशक्ति की विशेष प्रतिष्ठा है। इनकी पत्नी दक्ष प्रजापति की पुत्री स्मृति (मतान्तर से श्रद्धा) थीं, जिनसे इनके वंश का विस्तार हुआ।

       तत्पश्चात् अग्नि देव ही बृहस्पति नाम से अंगिरा के पुत्र के रूप में प्रसिद्ध भी हुए। उतथ्य तथा महर्षि संवर्त भी इन्हीं के पुत्र हैं। महर्षि अंगिरा की विशेष महिमा है। ये मन्त्रद्रष्टा, योगी, संत तथा महान् भक्त हैं। इनकी अंगिरा-स्मृति में सुन्दर उपदेश तथा धर्माचरण की शिक्षा व्याप्त है। सम्पूर्ण ऋग्वेद में स्‍मृति चन्द्रिका में अंगिरा के गद्यांश उपस्‍मृतियों के 72 श्‍लोक प्राप्‍त हुए हैं। इस ग्रंथ में अंत्‍यजों से भोज्‍य और पेय ग्रहण करने, गौ को चोट पहुँचाने का प्रायश्चित तथा स्त्रियों द्वारा नील वस्‍त्रधारण करने की विधि उल्ल्लिखित है। महर्षि अंगिरा तथा उनके वंशधरों तथा शिष्य-प्रशिष्यों का जितना उल्लेख है, उतना अन्य किसी ऋषि के सम्बन्ध में नहीं हैं। विद्वानों का यह अभिमत है कि महर्षि अंगिरा से सम्बन्धित गोत्रकार ऋषि ऋग्वेद के नवम मण्डल के द्रष्टा हैं। नवम मण्डल के साथ ही ये अंगिरस ऋषि प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि अनेक मण्डलों के तथा कतिपय सूक्तों के दृष्टा ऋषि हैं। जिनमें से महर्षि कुत्स, हिरण्यस्तूप, सप्तगु, नृमेध, शंकपूत, प्रियमेध, सिन्धुसित, वीतहव्य, अभीवर्त, अंगिरस, संवर्त तथा हविर्धान आदि मुख्य हैं। ऋग्वेद का नवम मण्डल जो 114 सूक्तों में निबद्ध है, पवमान-मण्डल के नाम से विख्यात है। इसकी ऋचाएँ पावमानी ऋचाएँ कहलाती हैं। इन ऋचाओं में सोम देवता की महिमापरक स्तुतियाँ हैं, जिनमें यह बताया गया है कि इन पावमानी ऋचाओं के पाठ से सोम देवताओं का आप्यायन होता है।