मैत्रेयी
वैदिक और उत्तर वैदिक काल में अनेक तत्ववेत्ता विदुषी स्त्रियाँ रही हैं। लोपामुद्रा ऋग्वेद की मंत्रदृष्टा हैं लेकिन मैत्रेयी की तत्व अभीप्सा बेजोड़ है। वह तत्ववेत्ता कुलपति याज्ञवल्क्य की दो पत्नियों में से एक थी।
मैत्रेयी वैदिक काल की एक विदुषी एवं ब्रह्मवादिनी (वह स्त्री जो जीवन भर वेद अध्ययन से उच्चतम दार्शनिक ज्ञान के लिए प्रयास करती हैं और अधिक सार्वभौमिक चेतना के लिए प्रयास करती हैं। महाभारत और गुह्यसूत्रों में, हालाँकि, मैत्रेयी को एक अद्वैत दार्शनिक के रूप में वर्णित किया गया है।
मैत्रेयी ने ज्ञान की प्राप्ति के लिए समस्त सांसारिक सुखों को त्याग दिया था। वे मित्र ऋषि की कन्या थीं। आध्यात्मिक विषयों पर याज्ञवल्क्य के साथ इनके अनेक शास्त्रार्थ हुए। वृहदारण्यक उपनिषद् में मैत्रेयी का अपने पति यज्ञावल्क्य के साथ बड़े ज्ञानवर्द्धक शास्त्रार्थ का उल्लेख है। मैत्रेयी ने याज्ञवल्क्य से यह ज्ञान ग्रहण किया कि हमें कोई भी सम्बन्ध इसलिए प्रिय होता है क्योंकि उससे कहीं न कहीं हमारा स्वार्थ जुड़ा होता है। मैत्रेयी ने अपने पति याज्ञवल्क्य से यह जाना कि आत्मज्ञान के लिए ध्यानस्थ, समर्पित और एकाग्र होना कितना जरूरी है।
याज्ञवल्क्य उस दर्शन के प्रखर प्रवक्ता थे, जिसने इस संसार को मिथ्या स्वीकारते हुए भी उसे पूरी तरह नकारा नहीं। अध्ययन, चिंतन और शास्त्रार्थ में मैत्रेयी की गहरी दिलचस्पी थी। मैत्रेयी का दार्शनिक संवाद मानव जीवन की दशा और भौतिक जीवन की सीमाओं पर सवाल बहुत ही सुंदर और गहरा है, यह न केवल प्राचीन भारत के संदर्भ में, बल्कि आधुनिक दुनिया में भी महत्वपूर्ण है। विद्वता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति मैत्रेयी ने जीव और ब्रह्मांड के विषय में लगातार नये प्रश्न उपस्थित किए। ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं, जिनमें अनेक दार्शनिक मैत्रेयी से मान्यता प्राप्त हैं। उन्होंने अपने ऋषि-पति याज्ञवल्क्य के व्यक्तित्व को बढ़ाने और उनके आध्यात्मिक विचारों के फूलने में योगदान दिया। याज्ञवल्क्य जब गृहस्थ आश्रम छोड़कर वानप्रस्थ के लिए गये तब उनके साथ मैत्रेयी ने भी वन गमन किया और याज्ञवल्क्य के साथ ज्ञान और अमरत्व की खोज की। वे अपने पति की विचार-संपदा की स्वामिनी बनी। आश्वलायन गुह्यसूत्र के "ब्रह्मयज्ञांगतर्पण" में मैत्रेयी का नाम सुलभा के साथ आया है। कहा जाता है कि पति परमेश्वर की उपाधि इन्हीं के कारण जग में प्रसिद्ध हुई। क्योंकि इन्होंने पति से ज्ञान प्राप्त किया था। मैत्रेयी ने ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए कन्या गुरुकुल स्थापित किए थे। वैदिक शिक्षा पद्धति एवं स्वतंत्र तथा समतामूलक समाज का ही प्रभाव था कि वैदिक काल में कई विदुषी ऋचाओं की रचना की थी। वैदिक सूक्तों की रचना करने वाली महिलाओं की संख्या बीस से ज्यादा है। हजारों साल पहले मैत्रेयी ने अपनी विद्वत्ता से न केवल स्त्री जाति का मान बढ़ाया, बल्कि उन्होंने यह भी सच साबित कर दिखाया कि पत्नी धर्म का निर्वाह करते हुए भी स्त्री ज्ञान अर्जित कर सकती है। मैत्रेयी को वैदिक भारत में महिलाओं के लिए उपलब्ध शैक्षिक अवसरों और उनकी दार्शनिक उपलब्धियों के उदाहरण के रूप में उद्धृत किया गया है। उन्हें भारतीय बौद्धिक महिलाओं का प्रतीक माना जाता है।