आर्यभट

 

           महान गणितज्ञ ज्योतिषविद् व खगोलशास्त्री आर्यभट के साथ भारत में गणित और खगोल शास्त्र का एक नया युग शुरू हुआ था। वे भारत के पहले वैज्ञानिक हैं जिन्होंने अपने समय (476 ई.) के विषय में स्पष्ट जानकारी दी है। विज्ञान और गणित के क्षेत्र में उनका योगदान अतुलनीय है। उनके द्वारा की गयी खोज आधुनिक युग के वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हैं। इस महान् व्यक्ति ने ज्योतिष के क्षेत्र में भी पहली बार कई क्रांतिकारी विचार प्रस्तुत किये। आर्यभट ने सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग को समान माना है। इनके अनुसार एक कल्‍प में 14 मन्‍वंतर, एक मन्‍वंतर में 72 महायुग (चतुर्युग) तथा एक चतुर्युग में सतयुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग समान हैं। वे पहले भारतीय वैज्ञानिक कहे जा सकते हैं जिन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है और नक्षत्रों का गोलक स्थिर है। इसके साथ ही आकाश में खगोलीय पिंड की स्थिति के बारे में भी एक व्यवस्थित ज्ञान दिया। आर्यभट ने यह सिद्ध किया कि पृथ्वी अपने अक्ष पर निरंतर रूप से घूमती है, और इसी कारण आकाश में तारों की स्थिति में परिवर्तन होता हैं। आर्यभट ने अपने ग्रन्थों में सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण के वैज्ञानिक कारणों को बताया है। उन्होंने यह भी उल्लेखित किया है कि चन्द्रमा और अन्य ग्रह के पास अपना स्वयं का प्रकाश नहीं होता है। वे सूर्य के परावर्तित प्रकाश से प्रकाशमान होते हैं। गणित एवं खगोलशास्त्र पर अपनी रचना आर्यभटीय में उन्होंने अंकगणित, बीजगणित व त्रिकोणमिति का बहुत ही सारगर्भित ढंग से वर्णन किया है। उनकी इस रचना में 108 छंद एवं 13 परिचयात्मक छंद हैं। उन्होंने पाई का मान दशमलव के चार अंकों तक बताया। आर्यभट द्वारा रचित इस ग्रन्थ का उपयोग आज भी हिन्दू पंचांग हेतु किया जाता है। आर्यभट के कार्यों की जानकारी उनके द्वारा रचित ग्रन्थों आर्यभटीय, दशगीतिका, तंत्र और आर्यभट सिद्धांत से प्राप्त होती है। किसी समय में आर्यभटीय ग्रन्थ बहुत प्रसिद्ध था। उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण भारत तक इस ग्रन्थ का प्रचार था। अनेक विद्वानों ने इस ग्रन्थ की टीका लिखी है। निःसंदेह हम इस बात को कह सकते हैं कि आर्यभट प्राचीन भारत के सर्वश्रेष्ठ खगोलशास्त्री और गणितज्ञ थे। वे परंपराओं को तोड़ने वाले एक क्रांतिकारी विचारक थे।