भास्कराचार्य

 

              कर्नाटक के देशष्ठ ऋग्वेदी ब्राह्मण परिवार में 1114 ई. में जन्मे भास्कराचार्य ने अपने पिता महेश्वर से गणित, खगोल विज्ञान तथा ज्योतिष की शिक्षा प्राप्त की थी। शुरुआती शिक्षा ग्रहण करने के बाद वह इसी कार्य में अग्रसर रहे। अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए वह भी एक प्रसिद्ध गणितज्ञ और खगोलविद् बन गये और उज्जैन में खगोलीय वेधशाला के प्रमुख के रूप में विख्यात भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त का वंशानुगत उत्तराधिकारी माना गया। उज्जैन की यह वेधशाला (जंतर-मंतर) उस काल में भारत की सबसे बड़ी वेधशाला थी। भास्कराचार्य ने अपनी उम्र के 36 वें वर्ष में सिद्धांत शिरोमणि नामक गणितीय ग्रन्थ की रचना की। इसमें उन्होंने गणित की बहुत सारी शाखाओं का आधारभूत ज्ञान व सूत्रों का प्रतिपादन किया है। इसके बाद उन्होंने करण कुतूहल लिखा। भास्कराचार्य का प्रमुख कार्य ग्रंथ सिद्धान्त शिरोमणि था, जिसे आगे चार भागों में विभाजित किया गया था, जिनमें से प्रत्येक अंकगणित, बीजगणित, कलन, त्रिकोणमिति और खगोल विज्ञान पर विविध विषयों से संबंधित था। इन्‍होंने गणित तथा ज्‍योतिषशास्‍त्र पर सिद्धान्‍त शिरो‍मणि, करण कुतूहल, वासनाकाष्‍य, बीजगणित, सर्वतोभद्र ग्रंथों की भी रचना की है। उन्हें कैलकुलस के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है क्योंकि यह संभव है कि वे अंतर गुणांक और अंतर कैलकुलस की कल्पना करने वाले पहले व्यक्ति थे। भास्कराचार्य ने संभवतः अपनी पुत्री लीलावती के नाम पर ही गणित की एक पुस्तक का नाम लीलावती रखा था जिसमें उन्होंने गणित की शाखा अंकगणित को समझाया है। मुख्यतः इसमें परिभाषाएँ, अंक गणितीय सूत्र, ब्याज गणना, ज्यामिति आरोहण, तलीय ज्यामिति, ठोस ज्यामिति, अनिश्चित समीकरणों के हल निकालना, व कई तरह के सिद्धांत इत्यादि को सम्मिलित किया गया है। उन्होंने कई खगोलीय मात्राओं को सटीक रूप से परिभाषित किया था। जिसमें वर्ष की लंबाई भी शामिल थी। एक उत्कृष्ट गणितज्ञ होने के साथ ही उन्होंने अंतर गणनाओं के सिद्धांतों की महत्वपूर्ण खोज की। यह माना जाता है कि भास्कराचार्य अंतर गुणांक और अंतर गणना की कल्पना करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने दशमलव संख्या प्रणाली के पूर्ण और व्यवस्थित उपयोग के साथ पहला काम लिखा और अन्य गणितीय तकनीकों और ग्रहों की स्थिति, संयोजन, ग्रहण, ब्रह्मांड विज्ञान, और भूगोल के अपने खगोलीय टिप्पणियों पर भी बड़े पैमाने पर लिखा। इसके अलावा, उन्होंने अपने पूर्ववर्ती ब्रह्मगुप्त के काम में कई अंतराल भी भरे। गणित और खगोल विज्ञान में उनके अमूल्य योगदान की मान्यता में, उन्हें मध्यकालीन भारत का सबसे महान गणितज्ञ कहा गया है। भास्कराचार्य ने सातवीं शताब्दी के ब्रह्मगुप्त के खगोल विज्ञान मॉडल को प्रयोग में लेते हुए, सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के एक चक्कर लगाने में लगे समय की गणना की। जिसके अनुसार पृथ्वी को एक चक्कर लगाने में 365.2588 दिन लगते हैं। वर्तमान वैज्ञानिकों के अनुसार यह समय 365.2563 दिन है। जिससे यह ज्ञात होता है कि उनकी गणना में सिर्फ 3.5 मिनट का ही अंतर है। जो इस बात को दर्शाता है कि उनका गणितीय का ज्ञान बहुत जबरदस्त था। खगोल विज्ञान में उन्होंने सूर्य उदय समीकरण, चंद्र ग्रहण, सूर्य ग्रहण, चंद्र वर्धमान, ग्रहों का तारों के साथ संयोजन, ग्रहों का ग्रहों के साथ संयोजन, सूर्य तथा चंद्रमा के पथ इत्यादि की भी गणना की।