बृहस्पति
बृहस्पति का अनेक ग्रंथों में उल्लेख मिलता है। इन्हें देवताओं का गुरु व नवग्रहों के समूह का नायक माना जाता है, साथ ही ज्ञान और वाग्मिता का ऋषि भी। इन्होंने ही बार्हस्पत्य सूत्र की रचना की थी। पुराणों में बृहस्पति को महर्षि अंगिरा का पुत्र बताया गया है। ज्योतिष में बृहस्पति को सूर्य से भी अधिक महत्वपूर्ण माना गया है। ऋग्वेद के ग्यारह सूक्तों में इनकी स्तुति हुई है एक स्थान में यह भी कहा गया है कि ये अंतरिक्ष के महातेज से उत्पन्न हुए थे। इन्होंने सारा अंधकार नष्ट कर दिया था। इनके बिना यज्ञ का कोई कृत्य पूर्ण नहीं होता। ये बुद्धि और वक्तृत्व के देवता माने गए हैं । ऋग्वेद की अनेक ऋचाओं में इनका जो वर्णन दिया हे, वह अग्नि के वर्णन से बहुत कुछ मिलता जुलता है । 'वाचस्पति' और 'सदसस्पति' भी इनके नाम हैं। कई स्मृतियाँ और चार्वाक मत के ग्रंथ इन्हीं के बनाए हुए माने जाते हैं। बृहस्पति अपने एक रूप से देव पुरोहित के रूप में ब्रह्मसभा और दूसरे रूप से ग्रह के रूप में प्रतिष्ठित होकर नक्षत्रमंडल में विराजमान रहते हैं तथा नवग्रहों में इनकी गणना होती हैं। इन्हें किसी भी ग्रह से अत्यधिक शुभ ग्रह माना जाता है। बृहस्पति के तीन नक्षत्र पुनर्वसु, विशाखा, पूर्वा भाद्रपद होते हैं। गुरु को वैदिक ज्योतिष में आकाश का तत्व माना गया है। इसका गुण विशालता, विकास और व्यक्ति की कुंडली और जीवन में विस्तार का संकेत होता है। बार्हस्पत्य सूत्र देवगुरु बृहस्पति का ग्रन्थ है। बृहस्पति चार्वाक दर्शन के प्रणेता माने जाते हैं। यह ग्रंथ अप्राप्य माना जाता है। सर्व दर्शन संग्रह के पहले अध्याय में चार्वाक मत के सिद्धांतों का सार मिलता है। इसे लोकायत दर्शन के नाम से भी जाना जाता है। भूमि, जल, अग्नि, वायु जिनका प्रत्यक्ष अनुभव हो सकता है, इनके अतिरिक्त संसार में कुछ भी नहीं है। इन चार तत्वों के समिश्रण से ही चेतना, शक्ति और बुद्धि का प्रादुर्भाव होता है। बृहस्पति ने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे। वर्तमान में अस्सी श्लोक प्रमाण उनकी एक स्मृति (बृहस्पति स्मृति) उपलब्ध है। पीतवर्ण, तेजोमय, ज्योतिर्विज्ञान के आधार देव गुरु का आह्वान किये बिना यज्ञ पूर्ण नहीं होता। श्रुतियों ने इन्हें सूर्य एवं चन्द्र का नियन्ता बताया है। सम्पूर्ण ग्रहों में ये सर्वश्रेष्ठ, शुभ प्रद माने जाते हैं। ये आठ घोड़ों से जुते अपने नीति घोष रथ पर आसीन होकर ग्रह-गति का नियन्त्रण करते हैं। देवों के गुरु बृहस्पति का तत्वज्ञानी के नाते कई विद्वानों से शास्त्रार्थ हुआ, जो इसके ज्ञान तर्क एवं स्वरितबुद्धि को प्रत्यक्ष प्रमाणित करते है। इसने उसे दान के स्वरुप की व्याख्या करते हुए, अन्नदान की महिमा का गान किया था। बृहस्पति सभी ग्रहों में बड़ा एवं वयोवृद्ध है। कुंडली में बृहस्पति को लेकर व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता, धार्मिक चिंतन, आध्यात्मिक ऊर्जा, नेतृत्व शक्ति, राजनैतिक योग्यता, संतति, वंशवृद्धि, विरासत, परम्परा, आचार व्यवहार, सभ्यता, पद-प्रतिष्ठा, पैरोहित्य, ज्योतिष तंत्र-मंत्र एवं तपस्या में सिद्धि का पता चलता है।