आचार्य चरक

 

आयुर्वेदीय चरक संहिता के महान ग्रन्थकर्ता आचार्य चरक को विशुद्ध नामक ऋषि के पुत्र तथा अनंत संज्ञक नामक नाग का अवतार माना जाता है। उपलब्ध आयुर्वेदीय संहिताओं में चरक संहिता सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थ है। इसमें चिकित्सा विज्ञान के मौलिक तत्वों का जितना उत्तम विवेचन किया गया है उतना संभवतः और कहीं भी प्राप्त नहीं है। चरक संहिता का रचनाकाल उपनिषदों के बाद और बुद्ध के पूर्व का माना जाता है। चरक की गणना भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में होती है। दो हजार वर्ष पूर्व चरक ने चिकित्सा संबंधी विचारों को एकत्र कर नये सिद्धांतों को प्रतिपादित किया तथा उन्हें चिकित्सा शिक्षा के योग्य बनाया। आठ भागों में विभाजित इस ग्रन्थ में 120 अध्याय तथा चरक द्वारा प्रतिपादित आयुर्वेद के लगभग सभी सिद्धांत शामिल हैं। इसमें व्याधियों के उपचार तो बताये ही गये हैं साथ ही अनेक बार दर्शन और अर्थशास्त्र के विषयों का भी उल्लेख है। यह सर्वविदित है कि आयुर्वेद को जानने और समझने के लिए आचार्य चरक के चिकित्सा सिद्धांतों को समझना बहुत जरूरी है। इसलिए आयुर्वेद के चिकित्सकों के बीच आचार्य चरक महत्व सबसे ज्यादा है। चरक आयुर्वेद के पहले चिकित्सक थे, जिन्होंने भोजन के पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता की अवधारणा को दुनिया के सामने रखा। आचार्य चरक और आयुर्वेद का इतना घनिष्ठ सम्बन्ध है कि एक का स्मरण होने पर दूसरे का अपने आप स्मरण हो जाता है। आचार्य चरक केवल आयुर्वेद के ज्ञाता ही नहीं थे परन्तु सभी शास्त्रों के विशेषज्ञ थे। उनका दर्शन एवं विचार सांख्य दर्शन एवं वैशेषिक दर्शन का प्रतिनिधित्व करता है। आचार्य चरक ने शरीर को वेदना, व्याधि का आश्रय माना है और आयुर्वेद शास्त्र को मुक्तिदाता कहा है। आरोग्यता को महान् सुख की संज्ञा दी है कहा है कि आरोग्यता से बल, आयु, सुख, अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष की प्राप्ति होती है। आयुर्वेद की सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाने वाली चरक संहिता में भारत के अलावा यवन, शक, चीनी आदि जातियों के खानपान और जीवन-शैली का भी उल्लेख मिलता है। आठवीं शताब्दी में इस ग्रन्थ का अन्य भाषाओं में अनुवाद हुआ और यह शास्त्र पश्चिमी देशों तक पहुँचा।