चार्वाक

 

         चार्वाक दर्शन एक प्राचीन भारतीय भौतिकवादी नास्तिक दर्शन है। यह मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को मानता है तथा पारलौकिक सत्ताओं को यह सिद्धांत स्वीकार नहीं करता है। यह दर्शन वेदबाह्य भी कहा जाता है। चार्वाक की शिक्षाओं को ऐतिहासिक माध्यमिक साहित्य से संकलित किया गया है। जैसे कि शास्त्र, सूत्र, और भारतीय महाकाव्य कविता में और गौतम बुद्ध के संवाद और जैन साहित्य से। चार्वाक प्राचीन भारत के एक अनीश्वरवादी और नास्तिक तार्किक थे। ये नास्तिक मत के प्रवर्तक बृहस्पति के शिष्य माने जाते हैं। बृहस्पति को चाणक्य ने अपने अर्थशास्त्र ग्रन्थ में अर्थशास्त्र का एक प्रधान आचार्य माना है। चार्वाक का नाम सुनते ही आपको ‘यदा जीवेत सुखं जीवेत, ऋणं कृत्वा, घृतं पिबेत्’ (जब तक जीओ सुख से जीओ, उधार लो और घी पीयो।) की याद आयेगी। प्रचलित धारणा यही है कि चार्वाक शब्द की उत्पत्ति ‘चारु’+’वाक्’ (मीठी बोली बोलने वाले) से हुई है। चार्वाक सिद्धांतों के लिए बौद्ध पिटकों में ‘लोकायत’ शब्द का प्रयोग किया जाता है जिसका मतलब ‘दर्शन की वह प्रणाली है जो इस लोक में विश्वास करती है और स्वर्ग, नरक अथवा मुक्ति की अवधारणा में विश्वास नहीं रखती’। चार्वाक ईश्वर और परलोक नहीं मानते। परलोक न मानने के कारण ही इनके दर्शन को लोकायत भी कहते हैं। सर्वदर्शनसंग्रह में चार्वाक के मत से सुख ही इस जीवन का प्रधान लक्ष्य है सुखवाद। चार्वाक केवल प्रत्यक्षवादिता का समर्थन करते हैं, वे अनुमान आदि प्रमाणों को नहीं मानते हैं। उनके मत से पृथ्वी जल तेज और वायु ये चार ही तत्व हैं, जिनसे सब कुछ बना है। उसके मत में आकाश तत्व की स्थिति नहीं है, इन्हीं चारों तत्वों के मेल से यह देह बनी है, इनके विशेष प्रकार के संयोजन मात्र से देह में चैतन्य उत्पन्न हो जाता है, जिसे लोग आत्मा कहते हैं। शरीर जब विनष्ट हो जाता है, तो चैतन्य भी खत्म हो जाता है। देहात्मवाद। इस प्रकार से जीव इन भूतों से उत्पन्न होकर इन्हीं भूतों के नष्ट होते ही समाप्त हो जाता है। आगे पीछे इसका कोई महत्व नहीं है। चार्वाक के अनुसार चार महाभूतों से अतिरिक्त आत्मा नामक कोई अन्य पदार्थ नहीं है। चैतन्य आत्मा का गुण है, चूँकि आत्मा नामक कोई वस्तु है ही नहीं अत: चैतन्य शरीर का ही गुण या धर्म सिद्ध होता है। अर्थात् यह शरीर ही आत्मा है।