महर्षि बौधायन
शुल्व सूत्र के रचनाकार महर्षि बौधायन का जन्म ईसा पूर्व 800 के आस-पास हुआ था। वे गणित के प्रकांड विद्वान् थे तथा गणित का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में होने वाले कर्मकांडों के लिए किया करते थे। बौधायन के अनेक सूत्र वैदिक संस्कृत में हैं जो धर्म, दैनिक कर्मकाण्ड, गणित आदि से सम्बन्धित हैं। वे कृष्ण यजुर्वेद के तैत्तरीय शाखा से सम्बन्धित हैं। सूत्र ग्रन्थों में सम्भवतः ये प्राचीनतम ग्रन्थ हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने श्रौतसूत्र, कर्मान्तसूत्र, द्वैधसूत्र, गृह्यसूत्र तथा धर्मसूत्र जैसे ग्रन्थों को भी रचा। शुल्व सूत्रों में यज्ञ के लिए उपयुक्त स्थान निर्धारण, यज्ञ वेदी का आकार-प्रकार निर्धारण और उसके निर्माण की योजना आदि का वर्णन है। 'शुल्व' का अर्थ होता है 'नापने का डोरा'। वस्तुतः शुल्व सूत्रों को भारतीय ज्यामिति तथा क्षेत्रमिति का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ कहा जा सकता है जिसके माध्यम से प्राचीन समय की ज्यामिति तथा क्षेत्रमिति के सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ है। इसी उद्देश्य के लिए उन्होंने शुल्व सूत्रों की रचना की थी। विशेष बात यह थी कि लोकप्रिय प्रमेय की कल्पना उन्होंने पाइथागोरस से सदियों पहले ही कर ली थी। उन्होंने अपने एक श्लोक में कहा है कि -
दीर्घ चतुरश्रस्या क्षण्यारज्जुः पार्श्व मानी तिर्यक्मानी।
च यत्पृथ्वभूते कुरु तस्ते दुमयं करोति॥
अर्थात् दीर्घचर्तुश (आयत) में रज्जु (कर्ण) का चैत्र (वर्ग) पार्श्वमनि (आधार) तथा त्रियांग मनि (लंब) के वर्गों के योग के बराबर होता है। उन्होंने दो वर्गों के योग से एक नवीन व बड़ी वर्गाकृति बनाने की विधि भी समझायी थी। बौधायन के शुल्वसूत्र में रैखिक समीकरणों के ज्यामितीय हल भी दिये गये हैं। सभी प्राचीन सभ्यताओं में गणित विद्या की पहली अभिव्यक्ति गणना प्रणाली के रूप में प्रगट होती है। बौधायन ने अनुष्ठानों की संरचना के निर्माणों के लिए विभिन्न अनुमानों का प्रयोग किये थे और इस क्रम में उन्होंने (पाई) का मान भी निकाला था। अपने एक सूत्र में बौधायन ने विकर्ण के वर्ग का नियम दिया है। एक आयत का विकर्ण उतना ही क्षेत्र इकट्ठा बनाता है जितने कि उसकी लम्बाई और चौड़ाई अलग-अलग बनाती हैं। बौधायन ने आयत, वर्ग, समकोण त्रिभुज समचतुर्भुज के गुणों तथा क्षेत्रफलों का विधिवत अध्ययन किया था। यज, शायद उस समय यज्ञ के लिए बनायी जाने वाली यज्ञ भूमिका के महत्व के कारण था। वैदिक काल में गणितीय गतिविधियों के अभिलेख वेदों में अधिकतर धार्मिक कर्मकांडों के साथ मिलते हैं। फिर भी, अन्य कई कृषि आधारित प्राचीन सभ्यताओं की तरह यहाँ भी अंकगणित और ज्यामिति का अध्ययन धर्मनिरपेक्ष क्रियाकलापों से भी प्रेरित था।