महर्षि कपिल
विकासवाद का सर्वप्रथम प्रतिपादन करने और संसार को एक क्रम के रूप में देखने वाले महर्षि कपिल प्राचीन भारत के एक प्रभावशाली मुनि थे। इन्हें सांख्य शास्त्र (यानि तत्व पर आधारित ज्ञान) के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है। जिसके मान्य अर्थों के अनुसार विश्व का उद्भव विकासवादी प्रक्रिया से हुआ है। इनको अग्नि का अवतार और ब्रह्मा का मानसपुत्र भी पुराणों में कहा गया है। श्रीमद् भागवत के अनुसार कपिल विष्णु के पंचम अवतार माने गये हैं। कर्दम और देवहूति से इनकी उत्पत्ति मानी गयी है। बाद में इन्होंने अपनी माता देवहूति को सांख्यज्ञान का उपदेश दिया जिसका विशद वर्णन श्रीमद् भागवत के तीसरे स्कन्ध में मिलता है। माना जाता है कि सांख्य दर्शन के माध्यम से जो तत्वज्ञान कपिल मुनि ने अपनी माता देवहूति के समक्ष रखा था वही श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता के उपदेश के रूप में सुनाया था। संसार को स्वाभाविक गति से उत्पन्न मानकर उन्होंने संसार के किसी अति प्राकृतिक कर्ता का निषेध किया। सुख-दु:ख प्रकृति की देन है तथा पुरुष अज्ञान में बद्ध है। अज्ञान का नाश होने पर पुरुष और प्रकृति अपने-अपने स्थान पर स्थित हो जाते हैं। अज्ञानपाश के लिए ज्ञान की आवश्यकता है अत: कर्मकांड निरर्थक है। ज्ञानमार्ग का यह प्रवर्तन भारतीय संस्कृति को कपिल मुनि की देन है। सांख्य दर्शन का प्रभाव भारतवर्ष के प्रायः सभी परवर्ती दार्शनिक संप्रदायों पर पड़ा है। दार्शनिक संप्रदायों के अतिरिक्त रामायण, महाभारत, स्मृतियों, पुराना इतिहास तथा अर्थशास्त्र के अनेक ग्रंथों पर भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। सांख्य दर्शन का प्रभाव ना केवल भारतीय विचारकों पर ही पड़ा है बल्कि अनेक विदेशी विचारक भी इससे प्रभावित हुए हैं। इनमें अनेक यूनानी विचारक जैसे- अनेक्जीमेड, एम्पीडोक्लस, पाइथागोरस, प्लोटाइनस आदि प्रमुख हैं। संसार के इतिहास में सर्वप्रथम कपिल मुनि के सिद्धांतों (सांख्य मत) ने ही मानव मस्तिष्क की पूर्ण स्वतंत्रता एवं अपनी शक्ति में उसका विश्वास प्रकट हुआ है। इसके विषय में कहा भी है कि नास्ति सांख्य समं ज्ञानं अर्थात् इसके समान कोई ज्ञान नहीं है।
कपिल मुनि ने कई ग्रन्थों कि रचना की, जिनमें प्रमुख हैं- सांख्य सूत्र, तत्व समास, व्यास प्रभाकर, कपिल गीता, कपिल पंचराम, कपिल स्तोभ और कपिल स्मृति। आधुनिक विकासवाद सांख्य विकासवाद से अनेक अर्थों में साम्य रखता है। कर्मकांड से इतर ज्ञान को महत्व देना सांख्य दर्शन की सबसे बड़ी विशेषता है। संभवतः कपिल मुनि ने ही ध्यान और तपस्या का मार्ग बताया था ज्ञान को साधना का रूप देकर भारतीय संस्कृति में सर्वप्रथम स्थापित किया।