महर्षि अगस्त्य
वैज्ञानिक ऋषियों के क्रम में महर्षि अगस्त्य भी एक अग्रणी वैदिक ऋषि थे। जिनका जन्म श्रावण शुक्ल पंचमी (तदनुसार 3000 ई.पू.) को काशी में हुआ था। इन्हें सप्तर्षियों में से एक माना जाता है। महर्षि अगस्त्य राजा दशरथ के राजगुरु थे। देवताओं के अनुरोध पर इन्होंने काशी छोड़कर दक्षिण की यात्रा की और बाद में वहीं बस गये थे। उन्होंने अगस्त्य संहिता नामक ग्रंथ की रचना की और कालान्तर में इस ग्रंथ की प्राचीनता पर हुए अनेक शोध में इसे सही पाया गया। आश्चर्यजनक रूप से इस ग्रंथ में विद्युत उत्पादन से संबंधित सूत्र मिलते हैं। अगस्त्य संहिता को लिखे जाने का कालखंड 3000 ई.पू. का माना जाता है।
इस ग्रंथ में विद्युत कोश (बैट्री) के निर्माण की विधि विस्तार से बतायी गयी है, बल्कि इस बात का भी उल्लेख है कि किस प्रकार पानी को उसकी घटक गैस यानी ऑक्सीजन और हाईड्रोजन में विभाजित किया जा सकता है। आधुनिक बैट्री अगस्त्य मुनि द्वारा वर्णित बैट्री से काफी मिलती जुलती हैं। अगस्त्य मुनि के अनुसार-
संस्थाप्य मृण्मये पात्रे ताम्रपत्रं सुसंस्कृतम्।
छादयेच्छिखिग्रीवेन चार्दाभि: काष्ठापांसुभि:॥
दस्तालोष्टो निधात्वय: पारदाच्छादितस्तत:।
संयोगाज्जायते तेजो मित्रावरुणसंज्ञितम्॥
अर्थात : एक मिट्टी का पात्र लें, उसमें ताम्र पट्टिका डालें तथा शिखिग्रीवा डालें, फिर बीच में गीली काष्ट पांसु लगाएँ, ऊपर पारा तथा दस्त लोष्ट डालें, फिर तारों को मिलायेंगे तो उससे मित्रावरुण शक्ति (विद्युत) का उदय होगा। आधुनिक युग में पश्चिम में बिजली का आविष्कारक माइकल फैराडे ने किया था। विद्युत बल्ब के आविष्कारक थॉमस एडिसन ने अपनी किताब में लिखा हैं कि "एक रात मैं संस्कृत का एक वाक्य पढ़ते-पढ़ते सो गया। उस रात मुझे स्वप्न में संस्कृत के उस श्लोक का अर्थ और रहस्य समझ में आया जिससे मुझे विद्युत बल्ब बनाने में मदद मिली।" अगस्त्य संहिता में आधुनिक समय में प्रयोग में लायी जाने वाली तकनीक इलेक्ट्रोप्लेटिंग (विद्युत लेपन) का भी विवरण मिलता है अतःउन्हें विद्युत कोष (बैट्री) द्वारा सोना, चाँदी, ताँबा आदि धातुओं पर परत चढ़ाने की विधि का आविष्कारक भी माना जाता है।