महर्षि कणाद

 

महान परमाणुशास्त्री महर्षि कणाद छठी सदी ईसा पूर्व गुजरात के प्रभास क्षेत्र द्वारका के निकट जन्मे थे। उन्होंने वैशेषिक दर्शन नामक एक पुस्तक की रचना की। दर्शनशास्त्र वह ज्ञान है जो परम सत्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है। माना जाता है कि परमाणु तत्व का सूक्ष्म विचार सर्वप्रथम इन्होंने किया था इसलिए इन्हीं के नाम पर परमाणु का एक नाम कण पड़ा। उन्हें विज्ञान सीखने और परमाणु ऊर्जा के बारे में खोज में बहुत रुचि थी। आचार्य कणाद के अनुसार परमाणु सूक्ष्म की वस्तुएँ हैं जिन्हें अविनाशी माना जाता है। महर्षि कणाद के अनुसार पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, दिक्, काल, मन और आत्मा इन्हें जानना चाहिए। इस परिधि में जड़-चेतन सारी प्रकृति व जीव आ जाते हैं। वैशेषिक सूत्रों में ईश्वर का स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। कणाद पृथ्वी, जल, तेज और वायु के नित्य परमाणुओं के संयोग से जगत की उत्पत्ति मानते हैं। परमाणु स्वतः शांत तथा निष्पद अवस्था में रहते हैं। किंतु प्राणियों के अदृष्ट के द्वारा परमाणुओं तथा मन आदि में स्पंदन होता है जिससे सृष्टि का आरंभ होता है। ईसा से 600 वर्ष पूर्व ही कणाद मुनि ने परमाणुओं के संबंध में जिन धारणाओं को उजागर किया, उनसे आश्चर्यजनक रूप से आधुनिक पश्चिमी वैज्ञानिकों से बहुत साम्य रखती है। कणाद ने लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त को उजागर कर दिया था। महर्षि कणाद ने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं अपितु उसको 'परमाणु' नाम भी उन्होंने ही दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकते। महर्षि कणाद ने कहा कि एक प्रकार के दो परमाणु संयुक्त होकर 'द्विणुक' का निर्माण कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि अलग-अलग पदार्थों के परमाणु भी आपस में संयुक्त हो सकते हैं। वैशेषिक सूत्र में परमाणुओं को सतत गतिशील भी माना गया है तथा द्रव्य के संरक्षण की भी बात कही गयी है। ये बातें भी पश्चिम के विद्वानों द्वारा यहीं से ली गयी हैं। ब्रह्माण्ड का विश्लेषण परमाणु विज्ञान की दृष्टि से सर्वप्रथम एक शास्त्र के रूप में सूत्रबद्ध ढंग से महर्षि कणाद ने आज से हजारों वर्ष पूर्व अपने वैशेषिक दर्शन में प्रतिपादित किया था। कुछ मामलों में महर्षि कणाद का प्रतिपादन आज के पश्चिमी विज्ञान से भी आगे जाता है। महर्षि कणाद कहते हैं, द्रव्य को छोटा करते जायेंगे तो एक स्थिति ऐसी आयेगी जहाँ से उसे और छोटा नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उससे अधिक छोटा करने का प्रयत्‍न किया तो उसके पुराने गुणों का लोप हो जायेगा। दूसरी बात वे कहते हैं कि द्रव्य की दो स्थितियाँ हैं- एक आणविक और दूसरी महत्। आणविक स्थिति सूक्ष्मतम है तथा महत् यानी विशाल । दूसरे, द्रव्य की स्थिति एक समान नहीं रहती है। महर्षि कणाद ने परमाणु को ही समझाने में अपना जीवन समर्पित कर दिया, इसे ही सृष्टि का मूल तत्व माना। कहा जाता है कि जीवन के अंत में उनके शिष्यों ने उनकी अंतिम अवस्था में प्रार्थना की कि कम से कम इस समय तो परमात्मा का नाम लें, तो कणाद ऋषि के मुख से निकला पीलव: पीलव: पीलव: अर्थात् परमाणु, परमाणु, परमाणु।