महर्षि वामदेव

 

       महर्षि वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मंडल के सूत्रद्रष्टा, गौतम ऋषि के पुत्र तथा जन्मत्रयी के तत्ववेत्ता हैं जिन्हें गर्भावस्था में ही अपने विगत दो जन्मों का ज्ञान हो गया था और उसी अवस्था में इंद्र के साथ तत्वज्ञान पर इसकी चर्चा हुई थी। वैदिक उल्लेखानुसार सामान्य मनुष्यों की भाँति जन्म न लेने की इच्छा से इन्होंने माता का उदर फाड़कर उत्पन्न होने का निश्चय किया। किंतु माता द्वारा अदिति का आवाहन करने और इंद्र से तत्वज्ञान चर्चा होने के कारण ये वैसा न कर सके। तब यह श्येन पक्षी के रूप में गर्भ से बाहर आये। एक बार इंद्र ने युद्ध के लिए वामदेव को ललकारा था तब इंद्रदेव परास्त हो गये। वामदेव ने देवताओं से कहा कि मुझे दस दुधारु गाय देना होगा और मेरे शत्रुओं को परास्त करना होगा तभी में इंद्र को मुक्त करूँगा। इंद्र और सभी देवता इस शर्त से कुतिप हो चले थे। वामदेव ने सामगान अर्थात् संगीत शास्त्र का ज्ञान दिया। सामवेद में संगीत और वाद्य यंत्रों की संपूर्ण जानकारी अंकित है। भरत मुनि द्वारा रचित भरत नाट्य शास्त्र सामवेद से ही प्रेरित है। महर्षि वामदेव ब्रह्मज्ञानी तथा जाति स्मर महात्मा रहे हैं। गौतम के पुत्र वामदेव की गणना गोत्रकार ऋषियों में होती है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षरों के पृथक-पृथक ऋषि माने गये हैं, उनमें पाँचवें अक्षर के ऋषि वामदेव हैं। उन्होंने विशिष्ट मंत्रों का संकलन करके गायन की पद्धति विकसित की। आधुनिक विद्वान् भी इस तथ्य को स्वीकार करने लगे हैं कि समस्त स्वर, ताल, लय, छंद, गति, मन्त्र, स्वर-चिकित्सा, राग नृत्य मुद्रा, भाव आदि सामवेद से ही निकले हैं। वामदेव को ऐसे वैज्ञानिक सत्यों का ज्ञान था जिनकी जानकारी आधुनिक वैज्ञानिकों को सहस्त्राब्दियों बाद प्राप्त हो सकी है। सामवेद में वर्णित ये कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनसे यह प्रमाणित होता है कि हमारे पूर्वजों को ऐसे ऐसे वैज्ञानिक तथ्यों का ज्ञान था जिनका आधुनिक विज्ञान को हजारों साल बाद भी अभी तक ठीक से ज्ञान नहीं है। साम गान के संदर्भ में वैदिक काल में कई वाद्य यंत्रों का उल्लेख मिलता है।