कात्यायन
स्कंदपुराण में कात्यायन को याज्ञवल्क्य का पुत्र बतलाया गया है। कात्यायन मुनि ने कात्यायन श्रौतसूत्र, कात्यायन गृह्यसूत्र, प्रतिहार सूत्र और शुक्लयजु:पार्षत् आदि ग्रंथों की रचना की। जिसमें उन्हें यज्ञविद्याविचक्षण कहा गया है। श्रोतसूत्र में अग्निहोत्र से अश्वमेध पर्यन्त यज्ञों का वर्णन किया गया है। श्रौत ग्रन्थों के अन्तर्गत हवन, याग, इष्टियाँ आदि सत्र प्रकल्पित किये गये हैं। वैदिक कल्पकारों में महर्षि कात्यायन का नाम अन्यतम है। उन्होंने अपने श्रौतसूत्र के प्रथम अध्याय में ही श्रौत की परिभाषाओं का प्रतिपादन किया है। कात्यायन श्रौतसूत्र की रचना अत्यन्त सुव्यवस्थित सूत्रशैली में हुई है। विषय विवेचन क्रमयुक्त और सुसम्बद्ध है। वैदिक शब्दावली और अपाणिनीय प्रयोग भी कहीं–कहीं पाए जाते हैं। कात्यायन श्रौतसूत्र पर लिखित व्याख्याओं में भर्तृयज्ञ की व्याख्या सर्वप्राचीन मानी जाती है। कात्यायन लिखित ' प्रतिज्ञासूत्र ' में प्रत्येक इष्टियों को प्रकृति कहा है। यह प्रसिद्ध है कि 'प्रकृति वद्धिकृति, कर्त्तव्या अर्थात् प्रकृति ने जो साधारण नियम कहे हैं वही विकृति में लागू होते हैं। उन्होंने यह भी ध्यान रखा है कि दर्श-पूर्णमास याग के कथनानुसार प्रथम दर्श का ग्रहण है और तदनुसार प्रथम दर्श का प्रतिपादन होना चाहिए। ऋषियों द्वारा इन पद्धतियों को बनाने का उद्देश्य वेदों में निहित शिक्षाओं और प्रकृति के विज्ञान अर्थात् प्रकृति में हो रहे यज्ञों को विविध क्रियाओं और हवनादि के माध्यम से जनसामान्य में प्रचारित करना था।
दूसरा गृहस्थों द्वारा उत्सवों तथा सामान्य यज्ञों से संबंध हैं। इनमें गृहस्थों के आन्हिक कृत्य एवं संस्कार तथा वैसी ही दूसरी धार्मिक बातें बताई गई है। गृह्य सूत्रों में सांख्यायन, शाम्बव्य तथा आश्वलायन के गृह्य सूत्र ऋग्वेद के हैं। सामवेद के गोभिल और खदिर गृह्य सूत्र हैं। शुक्ल यजुर्वेद का पारस्कर गृह्य सूत्र है और कृष्ण यजुर्वेद के सात गृह्य सूत्र हैं जो उसके श्रौत सूत्रकारों के ही नाम पर हैं। अथर्ववेद का कौशिक गृह्य सूत्र है।
धर्म सूत्र आमजन के कानूनों रहन-सहन तथा रीति रिवाजों से सम्बद्ध है। इसके अलावा आश्रम, भोज्याभोज्य, विवाह, दाय एवं अपराध आदि विषयों का वर्णन किया गया है। प्राचीन भारतीय चिंतकों के अनुसार मनुष्य का व्यक्तिगत तथा सामाजिक हित व कल्याण आश्रम व्यवस्था पर निर्भर होता है। मनुष्य का हित इसी बात में है कि वह अपने वर्ण, धर्म और आश्रम धर्म का ईमानदारी और निष्ठा सेपालन करे। धर्मसूत्र में राज्य भी मनुष्य की सामाजिकता का एक प्रमुख अंग है। अतः राजा और प्रजा के कर्तव्य दंड विधान, न्याय व्यवस्था और राजकीय कर आदि भी धर्मसूत्रों के अंतर्गत ही आते है। यह सूत्र मनु स्मृति का आधार है। महर्षि कात्यायन ने वैदिक अनुष्ठानों को सम्पन्न करने हेतु संहिताओं का ज्ञान उनके अनुष्ठानों की प्रक्रियाओं का सूक्ष्मतम परिचय एवं गुरु परम्परा से प्राप्त अनुभव सभी याज्ञिकों के लिए अनिवार्य बताया है। कोई भी याज्ञिक छोटा से छोटा वैदिक अनुष्ठान अकेले नहीं सम्पन्न कर सकता है। वैदिक अनुष्ठान की प्रक्रिया समान योग्यता वाले निष्ठावान् ब्राह्मणों का सामूहिक अनुष्ठान है। किसी समय वैदिक अनुष्ठान अत्यधिक लोकप्रिय अवश्य थे। खगोल विज्ञान के क्षेत्र कात्यायन का सूल्ब सूत्र मुख्य दिशाओं, पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण का पता लगाने की एक विधि से शुरू होता है। खगोलविद आज इसे भारतीय वृत्त विधि के रूप में जानते हैं। भारत से अधिकांश प्राचीन खगोल विज्ञान ग्रंथ, जैसे सूर्य सिद्धांत, उनकी तकनीक का उल्लेख करते हैं। ये ग्रंथ वेदी या अग्नि वेदी और उसके चारों ओर अस्थायी संरचनाओं के निर्माण में ज्यामिति के चरणों की भी व्याख्या करते हैं।