आचार्य चाणक्य

 

          भारत में हिमालय से समुद्र पर्यंत सर्वभौम साम्राज्य के उन्नायक, राजनीति के महान प्रवक्ता और प्रयोक्ता आचार्य विष्णुगुप्त चाणक्य को कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता रहा है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथ को रचने वाले आचार्य कौटिल्य का जन्म 371 ईस्वी पूर्व तक्षशिला का माना जाता है। चणक नामक आचार्य के पुत्र होने के कारण इन्हें चाणक्य पैतृक नाम प्राप्त हुआ तथा कौटिल्य इनका गोत्र माना गया है। उन्हें एक ऐसा मार्गदर्शक, विचारक व राजनीतिज्ञ निरूपित किया जाता है जिसने मगध के नंद राजाओं द्वारा शासित राज्य सत्ता को नष्ट कर मौर्य साम्राज्य की स्थापना में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। विशाखदत्त रचित नाटक 'मुद्राराक्षस' इस महान् आचार्य के जीवन को बहुत ही अच्छे ढंग से उल्लेखित करता है। चाणक्य को आरंभिक शिक्षा गुरु चणक द्वारा ही दी गयी। संस्कृत ज्ञान तथा वेद-पुराण आदि धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन चाणक्य ने उन्हीं के निर्देशन में किया। चाणक्य मेधावी अध्येता थे। अर्थशास्त्र में चाणक्य ने स्वतः ही कथन किया है कि- "इस ग्रंथ की रचना उन आचार्य ने की जिन्होंने अन्याय और कुशासन से क्रुद्ध होकर नंदों के हाथ में गये शास्त्र, शस्त्र और पृथ्वी का शीघ्रता से उद्धार किया था।" अर्थशास्त्र से समसामयिक राजनीति, अर्थनीति, विधि, समाजनीति और धर्मादि पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। इस विषय में तब तक जितने भी ग्रंथ उपलब्ध थे उनमें वास्तविक जीवन का चित्रण करने के कारण यह सबसे अधिक मूल्यवान है। इस शास्त्र के प्रकाश में न केवल धर्म, अर्थ और अनर्थ तथा अवांछनीय का शमन भी होता है।

          चाणक्‍य ने अर्थशास्त्र शब्द का प्रयोग एक व्यापक अर्थ में किया था। इसके अन्तर्गत मूलतः राजनीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कानून आदि का अध्ययन किया जाता था। आचार्य कौटिल्य की दृष्टि में राजनीति शास्त्र एक स्वतंत्र शास्त्र है और दर्शन, वेद तथा कानून आदि उसकी शाखाएँ हैं। सम्पूर्ण समाज की रक्षा, राजनीति या दण्ड व्यवस्था से होती है या रक्षित प्रजा ही अपने-अपने कर्तव्य का पालन कर सकती है। केवल राजनीति शास्त्र जैसे अनूठे विषय की चर्चा करने के कारण ही नहीं बल्कि चंद्रगुप्त मौर्यकालीन भारतीय शासन व्यवस्था की प्रामाणिक जानकारी प्रदान करने के कारण भी कौटिल्य अर्थशास्त्र आज भी प्रासंगिक है। इसमें राजनीति के अतिरिक्त तकनीकी कौशल, रसायन शास्त्र, भूगर्भ-विद्या, वास्तुविधान, जलमार्गों का निर्माण एवं नियंत्रण, कृषि, भाषा परक चिंतन, युग धर्म, धर्म स्थीयाधिकरण, विनयाधिकरण, संघवृत्ताधिकरण, तंगयुक्तयाधिकरण सहित अनेक विषयों का समाधान है।

           चाणक्य का संपूर्ण जीवन यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति अपने गुणों से ऊपर उठता है, ऊँचे स्थान पर बैठने से नहीं। चंद्रगुप्त मौर्य के माध्यम से एक सुदृढ़ शासन की स्थापना करके एक श्रेष्ठ राष्ट्र का उदाहरण प्रस्तुत करने वाले चाणक्य की शिक्षाएँ आज भी समाज तथा तथा देश के लिए प्रासंगिक हैं।