पतंजलि
महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यों के लिए विख्यात हैं। पहला व्याकरण की पुस्तक "महाभाष्य" के लिए तथा दूसरा "पाणिनि अष्टाध्यायी का टीका" लिखने के लिए और तीसरा व सबसे प्रमुख 'योग शास्त्र यानी "पतंजलि योगसूत्र" की रचना के लिए। पतंजलि के योग का महत्व इसलिए अधिक है, क्योंकि सर्वप्रथम उन्होंने ही योग विद्या को सुव्यवस्थित रूप दिया। पतंजलि के आष्टांग योग में धर्म और दर्शन की समस्त विद्या का समावेश तो हो ही जाता है साथ ही शरीर और मन के विज्ञान को पतंजलि ने योग सूत्र में अच्छे से व्यक्त किया है। पतंजलि का महाभाष्य उनकी कीर्ति को अमर बनाने के लिये पर्याप्त है। दर्शन शास्त्र में शंकराचार्य को जो स्थान 'शारीरिक भाष्य' के कारण प्राप्त है, वही स्थान पतंजलि को महाभाष्य के कारण व्याकरण शास्त्र में प्राप्त है। महाभाष्य की भाषा सरल और सुबोध है। अनेक शास्त्र विषयों की चर्चा विचारों की गहराई इत्यादि इस ग्रन्थ की अनेक विशेषताएँ हैं। प्रश्नोत्तरी पद्धति के कारण इस ग्रन्थ में की गई शास्त्रचर्चा जीवन्त प्रतीत होती है। पतंजलि एक प्रख्यात चिकित्सक और रसायन शास्त्र के आचार्य माने जाते हैं। रसायन विज्ञान के क्षेत्र में अभ्रक, धातुयोग और लौह्शास्त्र का परिचय कराने का श्रेय पतंजलि को जाता है। इनको योगशास्त्र के जन्मदाता की उपाधि भी दी जाती है। जो हिन्दू धर्म के छह दर्शनों में से एक है। पतंजलि ही पहले और एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने योग को आस्था, अंधविश्वास और धर्म से बाहर निकालकर एक सुव्यवस्थित रूप दिया था। इन्होंने योग के 195 सूत्रों को स्थापित किया। जो योग दर्शन के आधार स्तंभ हैं। इन सूत्रों के पढ़ने की क्रिया को भाष्य कहा जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग की महत्ता का प्रतिपादन किया है। जिसका जीवन को स्वस्थ रखने में विशेष महत्व है। इनके नाम इस प्रकार हैं ? यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, ध्यान, धारणा, समाधि। पतंजलि ने पाणिनी के अष्टाध्यायी पर अपनी टिप्पणी लिखी जिसे महाभाष्य कहा जाता है। इनका काल लगभग 200 ई.पू. माना जाता है। पतंजलि ने इस ग्रंथ की रचना कर पाणिनी के व्याकरण की प्रामाणिकता पर अंतिम मोहर लगा दी थी। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का विश्वकोश भी है।